जीवन की लंबी यात्रा में दौड़ – या रेस – एक अनिवार्य साथी बन गया है। जब तक हम किसी प्रतियोगिता या चुनौती में सक्रिय रूप से भाग नहीं लेते, हमारा भीतर आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा ज्वलंत नहीं रहती। उसी वजह से, ऊँचे लक्ष्यों को रचने और उन्हें प्राप्त करने के सपने को जमीन पर उतारना कठिन हो जाता है।
हाल ही में यह बात जूनापीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद जी के जीवन सूत्र में भी सामने आई। उन्होंने स्पष्ट किया कि असली प्रतियोगिता वह है जो हमें स्वयं के बेहतर संस्करण की ओर प्रेरित करे, न कि केवल बाहरी पदों या मान्यताओं के लिए।
स्वास्थ्यपूर्ण प्रतिस्पर्धा का अर्थ क्या है?
स्वामी अवधेशानंद जी के अनुसार, प्रतियोगिता को दो मुख्य प्रकारों में बाँटा जा सकता है:
- स्वयं के विरुद्ध मुकाबला: अपने वर्तमान स्तर से बेहतर प्रदर्शन करने का संकल्प।
- सकारात्मक सामाजिक प्रतिस्पर्धा: अन्य के साथ मिलकर उच्च मानकों को स्थापित करना, जिससे सभी के विकास में योगदान हो।
इन दोनों दृष्टिकोणों को संतुलित रखकर हम न केवल व्यक्तिगत सिद्धि, बल्कि समाज के लिए भी उपयोगी बनते हैं।
जीवन सूत्र से सफलता की कुंजी
स्वामी जी के जीवन सूत्र में सबसे अहम तत्व ‘उच्च लक्ष्यों की चाह’ है। यदि किसी को किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धी स्थिति में भाग लेने का मौका नहीं मिलता, तो उनके भीतर यह मनोवैज्ञानिक शून्यता बनी रहती है। अतः:
- रोज़मर्रा की चुनौतियों पर सक्रिय रहें।
- अपने उद्देश्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करें।
- सफलता को एक प्रक्रियात्मक यात्रा के रूप में देखें, न कि एकल गंतव्य के रूप में।
- किसी भी प्रतिस्पर्धा से आगे बढ़ने के लिए स्वस्थ मानसिकता बनाए रखें।
सफलता का वास्तविक सूत्र एक सरल परंतु गहरा मंत्र है – “जहाँ लक्ष्य है, वहीं रोशनी है।” इस दिशानिर्देश के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाना निस्चय ही, अनगिनत नई ऊँचाइयों को दर्शाएगा।
किसी भी उत्तेजक पहलू को ज्ञान के जरिये अधिरोहण करके, हम अपने व्यक्तिगत जीवन के साथ-साथ समाज के विकास के लिये भी एक प्रेरणास्रोत बन सकते हैं। इसलिए आगे बढ़ें, प्रतिस्पर्धा को स्वस्थ रखें, और नए राजनैतिक ऊँचाइयों की ओर हाथ बढ़ाएँ।