सुप्रीम कोर्ट ने टेट्रा पैक में शराब की पैकेजिंग पर सख्त चेतावनी दी
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जोयमाल्या बागची ने शराब को जूस पैक जैसी ढाल में बेचने की आलोचना की। उन्होंने बताया कि ऐसी पैकिंग बच्चों के हाथों में आसानी से पहुँच सकती है और उन्हें स्कूल बैग में छिपाकर ले जाने की सम्भावना बढ़ जाती है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि इन पैकेटों पर न तो स्वास्थ्य चेतावनी लिखी है और न ही किसी भी प्रकार का संकेत है, जिससे नाबालिगों के लिए यह लुभावना विकल्प बन जाता है।
दो़ शराब ब्रांडों के बीच 20‑साल से चले आ रहे ट्रेडमार्क मुकदमे का सारांश
सुनवाई के दौरान दोनों कंपनियों – ऑफिसर्स चॉइस और ओरिजिनल चॉइस – के बीच 30 से अधिक वर्षों से चल रहे नाम, पैकेजिंग डिजाइन और ब्रांड प्रस्तुति पर विवाद पर चर्चा हुई। दोनों ब्रांडों ने “चॉइस” शब्द के बंटवारे के लिये आपसी आपत्ति जताई, जबकि बोतलों की डिज़ाइन, रंग योजना और लेखन शैली पर भी विवाद था।
वकील ने मुकदमे के दौरान दोनों पैकेजिंग को दिखाया
इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी अपीलेट बोर्ड (IPAB) और मद्रास हाई कोर्ट से होकर (~) यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। मुकुल रोहतगी ने अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करते हुए जजों को दोनों ब्रांडों की बोतलों और टेट्रा पैकों के नमूने दिखाए। इन नमूनों पर चर्चा के बाद, जस्टिस कांत ने टेट्रा पैकिंग पर विशेष टिप्पणी की।
टेट्रा पैक में शराब: न्यायिक प्रतिक्रिया और संभावित आदेश
जस्टिस कांत ने कहा, “ऐसा पैक जूस के पैक जैसा दिखता है, जिसे स्कूल बैग में छिपाकर ले जाया जा सकता है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि यह सरकारी नियमों के तहत क्यों बाजार में है।” उन्होंने यह भी जताया कि सरकारें वाजिब राजस्व कमाने के बजाय नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को भी सामने रखना चाहिए। कोर्ट ने अभी तक कोई आदेश नहीं दिया, परंतु सरकारों को टेट्रा पैक में शराब की बिक्री पर पुनर्विचार करने की चेतावनी दी।
मध्यस्थता के माध्यम से विवाद का अंतिम समाधान खोजने का आह्वान
सुनवाई के अंत में न्यायालय ने सुझाव दिया कि दोनों ब्रांडों ने 90 के दशक से चल रही लंबी कानूनी जद्दोजहद के बाद मध्यस्थता के जरिए समाधान ढूँढना चाहिए। जस्टिस एल. नागेश्वर राव को मध्यस्थ नियुक्त कर, दोनों कंपनियों को इस मार्ग पर फीका पड़ने से पहले एक नया रास्ता तलाशने का निर्देश दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट की इस तरह की पहल से स्पष्ट होता है कि आज भारतीय न्यायपालिका युवाओं के स्वास्थ्य और कल्याण को बेहतर बनाने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है, विशेषकर जब बात शराब और उसके विपणन के तरीकों की हो।