भारत में 2023 में छात्र सुसाइड का स्तर बना नया रिकॉर्ड – NCRB रिपोर्ट
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (NCRB) की 2023 की नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, पूरे देश में 1,71,000 से अधिक लोगों ने आत्महत्या की। इनमें से 13,892 शैक्षणिक छात्रों ने इस वर्ष जीवन समाप्त किया, जो पिछले दस वर्षों का सबसे अधिक संख्या है। यह आंकड़ा बताता है कि अपरिचित दबावों और सामाजिक चुनौतियों के बावजूद, युवा वर्ग पर असर लगातार बढ़ता जा रहा है।
सारांश आँकड़े
- कुल आत्महत्या: 1,71,000+
- छात्र: 13,892 (8.1 %)
- बेरोजगार: 14,234 (8.3 %)
- 2014–2023 में छात्र सुसाइड 72.9 % बढ़े – 70 % से अधिक की वृद्धि।
2012–2013 में इस प्रवृत्ति के पहले भी इसी प्रकार के उछाल देखे गए थे, पर यह सबसे उल्लेखनीय दशक है। यदि पिछले दशक का औसत 15% से अधिक के अंतर के बाद भी 2023 में 13,892 छात्र सुसाइड का रिकॉर्ड है, तो यह स्पष्ट संकेत है कि विद्यार्थियों पर दबाव अकेला मामला नहीं है।
मुख्य कारण एवं विश्लेषण
संज्ञायक अध्ययन से पता चलता है कि:
- उम्र 18 वर्ष से कम के छात्रों के बीच “परीक्षा में असफलता” मुख्य प्रेरक है, जिसमें 1,303 छात्र सुसाइड के शिकार हुए।
- **बेरोजगारी** से जुड़े सामाजिक दबाव के कारण लगभग समान संख्या में छात्र आत्महत्या कर रहे हैं।
- सामाजिक अपेक्षाएँ, प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं का अत्यधिक महिमामंडन और “स्टूडेंट या नयी नौकरी न मिलने” की चिंता भी माहौल को बिगाड़ती है।
रोकथाम एवं प्रबंधन के लिए सरकार के प्रमुख उपाय
कई नीति दस्तावेज़ और कानूनी कदम उठाए गए हैं:
- मेंटल हेल्थ केयर एक्ट, 2017: मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्तियों के उपचार अधिकार और गरिमापूर्ण जीवन का स्पष्टीकरण।
- एंटी‑रैगिंग मेज़र्स: सभी शैक्षणिक संस्थानों को रैगिंग की शिकायत पर FIR दर्ज कराना अनिवार्य।
- UGC के काउंसलिंग गाइडलाइन, 2016: विश्वविद्यालयों में विद्यार्थियों के लिए काउंसलिंग सिस्टम की स्थापना।
- गेटकीपर ट्रेनिंग (NIMHANS & SPIF): प्रशिक्षित गेटकीपर्स का नेटवर्क बनाकर संभावित सुसाइडल व्यवहार के प्रारम्भिक संकेतों की पहचान।
- NEP 2020 के तहत विशेष सामाजिक‑भावनात्मक शिक्षा: शिक्षण में सोशल वर्कर्स और काउंसलर की भूमिका पर जोर।
विशेषज्ञों के विचार
साइकोलॉजिस्ट डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी (सुसाइड प्रिवेंशन टास्क फ़ोर्स) ने कहा:
“एक छात्र की आत्महत्या का कोई एक कारण नहीं होता। परीक्षा असफलता के अलावा, जेनेटिक्स, सामाजिक दबाव, पेरेंटल एक्स्पेक्टेशंस व शिक्षा तंत्र सभी महत्वपूर्ण कारक हैं।”
उन्होंने आगे बताया कि समाज ने “अकादमिक सफलता” को परम्परागत परिभाषा से ऊपर रख दिया है, जिससे अधिकाधिक युवा अपने मूल्य को मात्र अंकों से मापने लगते हैं। ‘कॉपी‑कैट’ प्रभाव के चलते, यदि एक सेलिब्रिटी या फ़िल्मी अभिनेता पर सुसाइड का प्रचार-प्रसार किया जाए, तो समान परिस्थितियों में अन्य युवा भी अपने जीवन का अंत चुन सकते हैं। इसलिए, मीडिया द्वारा सुसाइड की रिपोर्टिंग में बहुत सतर्कता आवश्यक है।
संक्षिप्त सामाजिक प्रतिक्रिया
रिपोर्ट के अलावा, महाराष्ट्र के नाशिक में 17 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र ने अपनी निराशा को शहीद करते हुए 5वीं मंजिल से छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली। उन्हें सोशल मीडिया पर “जीवन में कोई लक्ष्य नहीं” लिखते हुए देखा गया था। यह घटना स्पष्ट करती है कि किस तरह की भावनात्मक कमजोरी और असंतोष वयस्कों के लिए भी विनाशकारी परिणाम ला सकता है।
नियामक ढांचे का सुदृढ़ीकरण, स्कूलों में मनोवैज्ञानिक समर्थन को प्रोएक्टिव रूप देना, और परिवार व पेरेंट्स द्वारा समुचित मार्गदर्शन को बढ़ावा देना – यह सभी वैयक्तिक और समाज स्तर पर सुसाइड खतरे को कम करने के लिये अनिवार्य कदम हैं।