आज पितृ पक्ष की द्वितीया तिथि: श्राद्ध और धूप‑ध्यान का महत्व
आज पितृ पक्ष की द्वितीया तिथि पर, परिवार के वृद्ध और दिवंगत अवशेषों के लिए श्राद्ध, धूप‑ध्यान, पिंडदान एवं तर्पण जैसे धर्म‑कर्म किये जाने की परंपरा है। पिताओं को पितृ देवता माना जाता है और उनके प्रति किये गये पवित्र कार्यों से परिवार में सुख‑समृद्धि बनी रहती है।
पितृ पक्ष के मुख्य धर्म‑कर्म
- श्राद्ध – दिवंगत के पितर देवता के लिए भक्ति और शोक भरी अनुष्ठान।
- पिंडदान – भतीजों की भलाई के लिए भरती और पिंड का अनुष्ठान।
- धूप‑ध्यान – पवित्र धूप के साथ ध्यान, पितरों की भलाई के लिए।
- तर्पण – पचास पानी के प्याले से पितरों को प्रतिदान दिया जाता है।
सभी धर्म‑कर्म वर्ष में बारह अमावस्या पर अधूरे नहीं छोड़े जाते, क्योंकि यह एक साल की पितृ ऋण वसूली के प्रमुख दिन हैं।
पितृ ऋण का शास्त्रीय दृष्टिकोण
उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार शास्त्रों में तीन ऋणों का वर्णन है:
- देव ऋण – भगवान विष्णु, श्रीकृष्ण, श्रीराम और अन्य देवताओं की पूजा से निपटता है।
- ऋषि ऋण – शिव पूजा एवं साधक‑संतों को दान‑पुण्य द्वारा समाप्त होता है।
- पितृ ऋण – पिताओं के लिए श्राद्ध, पिंडदान, धूप‑ध्यान और तर्पण से समाप्त होता है।
श्रेणीबद्ध इन धर्म‑कर्मों के माध्यम से पितृ ऋण को निवारण किया जाता है तथा परिवार को आध्यात्मिक शांतिदायिनी शक्ति प्राप्त होती है।
पितृ देवता का दर्शन और उसकी तृप्ति
पितृ पक्ष में माना जाता है कि पितृ लोक से पितर देव अपने वंशजों को देखने के लिये धरती पर आते हैं। उनके लिए किए गये श्राद्ध एवं धूप‑ध्यान उन्हें संतुष्ट करते हैं और वे अपने धाम – पितृ लोक की ओर लौट जाते हैं। यदि पितरों को श्रद्धा नहीं दी जाए तो वे अतृप्त रहकर दुखी होकर पितृ लोक लौटते हैं।
कौन किसका श्राद्ध कर सकता है?
श्राद्ध के अधिकार और कर्तव्य के दृष्टिकोण से:
- पुत्र एवं पुत्री – माता-पिता व दादा-दादी का श्राद्ध कर सकते हैं।
- पति या पत्नी – अपने साथी के पितरों के श्राद्ध में सहायता कर सकता है।
- भाई-बहन एवं ससुराल के सदस्य – यदि परिवार में पिताओं के नाम व स्थान पर असमर्थता हो तो सहयोग कर सकतें हैं।
- वंशज व रिश्तेदार – पिताओं के नाम पर श्राद्ध करने का अधिकार होता है, विशेषकर जब परिवार में प्रमुख कर्ता अनुपस्थित हों।
सभी धर्म‑कर्मों को परिवार के सदस्यों की समन्वित एकजुटता के साथ पूरा किया जाना चाहिए, जिससे पितरों की भलाई और परिवार की आशीर्वाद प्राप्त हो सके।
पितृ पक्ष के इस पावन अवसर पर, हमें अपने पितरों की आत्मा के प्रति सम्मान और भक्ति दिखाते हुए, श्राद्ध व अन्य धर्म‑कर्मों को स्नेहपूर्वक अपनाना चाहिए। इनके अलावा, वंशजों को पितृ ऋण से मुक्ति का अनुभव होकर, परिवार में शांति और समृद्धि बनी रहेगी।