परिचय
पछतावों के जाल में फंस जाना अक्सर जीवन को पीछे खींचता है। चाहे वह अनजाने में की गई गलती हो या गलत निर्णय, यह भावना हमें आज के क्षण से अलग कर “काश…” की निराशा के सागर में डुबो देती है। इस लेख में हम श्रीकृष्ण की गीता के श्लोकों के माध्यम से सीखेंगे कि कैसे हम इस भाव को पराजित कर सकें और शांति प्राप्त कर सकें।
1. कर्तव्य पर भरोसा — ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’
गीता 2.47 के अनुसार, “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं।”
- विचार: जब फलं हमारे हाथ से बाहर हो, तब भी हमारा प्रयास वैध है।
- अपनाने का तरीका: केवल परिणाम पर नहीं, बल्कि प्रयास पर ध्यान दें।
- कर्म सुधार: असफल होने पर खुद को माफ करें, नियमों के अनुसार सुधार करें और आगे बढ़ें।
2. शोकमुक्त सोच — ‘पण्डिता न अनुशोचन्ति’
गीता 2.11 में कहा गया है कि “ज्ञानी जीवित और मृत दोनों के लिए शोक नहीं करते।”
- विचार: गलतियाँ सामान्य हैं, पर उनसे सीखना ही सच्ची बुद्धिमत्ता है।
- अपनाने का तरीका: त्रुटि के साथ ही उसके नतीजे से परे देखें, शोक को छोड़कर आगे बढ़ें।
3. साहस और निराशा से ऊपर उठना — ‘क्लैब्यं मा स्म गमः’
गीता 2.3 के शब्द: “उठ और लड़ो, कायरता तुम्हें गौरव नहीं देती।”
- विचार: पछतावे को अंत नहीं, बल्कि आंतरिक युद्ध का संकेत मानें।
- अपनाने का तरीका: निराशा में डूबने के बजाय, आगे बढ़ने की प्रेरणा पाएं।
4. क्षमाशीलता और समर्पण — ‘सर्वधर्मान्परित्यज्य’
गीता 18.66 में यह वादा है: “सभी धर्म छोड़ कर मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हें पापों से मुक्त कर दूंगा।”
- विचार: भगवान की क्षमाशीलता को अपनाना सीखें, स्वयं को भी उसी तरह माफ करें।
- अपनाने का तरीका: अपनी गलती को स्वीकारकर सुधार का निश्चय करें, और आगे बढ़ें।
5. वर्तमान में जीकर शांति पाना
“भूतकाल की पीड़ा” और “भविष्य की चिंता” दोनों ही मन को थकाते हैं।
- विचार: वर्तमान वह क्षण है जहाँ आप सबसे सक्रिय और प्रभावी होते हैं।
- अपनाने का तरीका: आज के कार्य को बेहतर बनाकर ही आप अतीत की गलतियों को सुधर सकते हैं।
निष्कर्ष
श्रीमद् भगवद गीता के शिक्षण हमें बताते हैं कि पछतावा न सिर्फ़ भूतपूर्व अपराध का लबादा है, बल्कि प्रगति की राह में एक सीख का पथ भी है। जब हम अपने प्रयासों पर भरोसा रखें, शोक से ऊपर उठें, साहस और क्षमा को अपना उपकरण बनायें, तो वर्तमान क्षण ही हमारा सबसे सशक्त साथी बनता है।
तो अगली बार जब पछतावे की गहराई महसूस हो, तो श्रीकृष्ण के इन सन्देशों को याद करें, खुद को माफ़ करें और फिर से “अभी” में जिएँ — यही शांति और उन्नति का वास्तविक सूत्र है।